अम्माँ खान सुनते हो…

Silence Speaks💕
2 min readMar 17, 2021

--

अब आए हो, तो दास्ताँ-ए-शहर मेरी सुनने को

तो बैठो फिर फुर्सत से हर एक बात जान ने को

हमें जल्दी में काम बिगाड़ ने की आदत ना है दोस्त

हम सोचते हैं मुददत तलक, एक फैसला सुना ने को

ये भाग दौड़ की ज़िन्दगी से हमारा तार्रुफ़ ना कराया गया कभी

हम तो रखते हैं शौख बस ग़ज़लों और अशारों का — दिन-रात हर कभी’

हमें फुर्सत हैं रंगों की बारीकियों में

वो सुर्ख, मूंगिया, ये है उन्नाबी

वो पानदान की सूरत जो देखी हमनें

चेहरा लाल हो जाए, क्या बात है पान की

वो चांदी की थाली और फिर चांदी के वरक़ों में लिपटे हुए पान

भोपालियों का इंतज़ार करते, किसी उम्दा महफ़िल के दरमियान

वो कई तरीकों से पकने वाले कबाब की क़िस्में,

वो कोफ्ते हैं नरगिसी, या पाए के सालन में रोटी चूरें

रोटी होगी रोग़नी, या मांडे पकेंगे

ये दिलचस्प बातें होती हैं किसी घर में दावत से पहले

वो ख़ुशी हर शख्स के चेहरे पर ज़ाहिर होती

मेरे घर में दावत है किसी मेहमान की

वो खुद को समझते हैं बहोत खुश किस्मत

जो पाकवा दें मेहमान की पसंदीदा चीज़ — बढ़ा दें दावत की ज़ीनत

की इतनी मोहब्बत करते हैं वो सबसे

वो गुफ्तुगू का सिलसिला चलता रहा की कब रात के २ बज जाते

इतने ख़ुलूस से गले मिलकर रुखसत मेहमान को करते

हवा बहोत अलग हैं भोपाल की

न समझते किसी को कम, किसी हाल में भी

मदद के लिए आते आगे सबसे पहले

रातों में पटिये काम तो बहोत आते

कभी वो घर, कभी दोस्त बन जाते

दिलों के हाल से रूबरू होते

चाय की चुस्कियों के बीच माहौल बनते

पान को मुँह में दबाकर

बात करना, दुसरे को समझाना हुनर अलग है ये

दोस्ती के क़सीदे, इश्क़ की बाज़ी, दिन भर की बातें सुनाई वहां जाती

उन मंदिरों-मस्जदों की गुम्बद-मीनारों को खबर सब की है

वो राज़ छुपाये, बोझ से, सालों से सीधे खड़े हैं

वो दालान गवाह ग़म और ख़ुशी के हैं

शहर मेरा बहोत समझदार है

किया करता नहीं दुसरे शहरों के लोगों को शर्मसार कभी

हेमशा बड़े दिल से इस्तक़बाल करता

गुज़ारो दिन महीने नहीं मगर सालोँ यहाँ

ना हवा, पानी, ज़मीन की कमी है

जो महसूस हो कभी कमी तो

खड़े हैं यहाँ के शहरी सभी

ना निकालो हर्फ़-ए-ग़लत इस पर

बुज़ुर्गी समेटे हुआ है किस क़दर

शहर की आबो-हवा तो ठीक है

बाशिंदों की नब्ज़ सही रहे यह ज़रूरी है

खानदान से बढ़कर, शहर भोपाल है

अपना बुज़ुर्ग समझकर, इसकी इज़्ज़त करना

आंच आए ना इस शहर पर ये ख़याल रखना

कई शहर हैं दुनिया में

आती बात ना क़तई भोपाल जैसी किसी में

लोग बहोत फ़िक्र में डूबे होंगे

चिंगारी लगाने किसी तरह बात आग तक पहुंच आने

गुज़ारिश बस आपसे इतनी है, साथ पानी हमेशा रखना उस आग को बुझाने

राख के ढेरों से बनता कुछ नहीं है

भोपाल को ख़त्म होने से बचाना सिर्फ हमें ही है

--

--

Silence Speaks💕
Silence Speaks💕

Written by Silence Speaks💕

Not chasing popularity, but delving into the depths of the human mind. | Stained Glass & Mosaics | Ms. Introvert | Writer | A dainty entrepreneur |

No responses yet