कितनी दफा आयी थी मैं …

Silence Speaks💕
1 min readMar 17, 2021

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कितनी दफा आयी थी मैं

आहत से यक़ीन हुआ, आप वहां मौजूद हैं

झाँखकर देखा, मसरूफ आप बहोत थे

बिजली की तरह दौड़ी थी

दालान में राखी कुर्सी से, मैं टकराई भी थी

कुछ हवाओं से ख़ास बातें करीं

और फूलों से गले मिली भी थी

निकली ही थी वहां से

भीग गयी बरसात में

एक चाय की दूकान पर सिक रहीं थी बातें कई

चुस्कियों के बीच में, उलझने हज़ार थीं

खूशबूएं बहोत सी आपके कमरे में बसी थी

बैठकर जो लुत्फ़ ले रहे थे आप अंदाज़ में

दोस्तों के इर्द -गिर्द बैठे थे आप उन्हें सुन ने

सिलसिला मुसलसल चल रहा था

फिर शिकायत आप ने की, उनसे जो सुना रहे थे दास्ताने -इश्क़ अपनी

आपने उनसे कहा, मुकम्मल आप जब हैं, आपके नज़दीक मैं रहूँ

मंज़ूर हैं आपके कई तादाद इलज़ाम भी

क़रीब आ नहीं पाते हम

बीच खवाबों, उलझनों और ग़म के

वक़्त निका लिए जनाब, याद करने हमें

वादा है, क़रीब आ जाएंगे

ख्वातीनो-हज़रात, सोच रहे हैं आप क्या, ज़िक्र ये किसका है?

इल्तिजा है ज़ोर न दें

यूँ अपने ज़हन पर कुछ ख़ास

मैं तो हूँ एक नज़म, जो आना चाहती है बस इन्ही के पास

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Silence Speaks💕
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Written by Silence Speaks💕

Not chasing popularity, but delving into the depths of the human mind. | Stained Glass & Mosaics | Ms. Introvert | Writer | A dainty entrepreneur |

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